इसलिए बदलाव या तरक्की को नापसन्द करना लगभग इनका स्वभाव बन गया।
3.
नापसन्द करना है तो इग्नोर या नज़र-अंदाज़ भी तो कर सकते हैं?
4.
विवाद फैलाने वाले, घृणा पैदा करने वाले या पूर्वाग्रह से प्रभावित पोस्टों को नापसन्द करना बेशक जायज है किन्तु सिर्फ ब्लोगर के प्रति दुराग्रह रखकर ही किसी के पोस्ट को नापसन्द किया जाये यह कहाँ तक उचित है?
5.
अब आप विचार करके देखें कि सुख का भोग तो अच्छा लगता है, लेकिन उसका परिणाम अच्छा होता है क्या? जिसका परिणाम रुचिकर नहीं होता उससे अरुचि हो जाना, उसको नापसन्द करना क्या स्वाभाविक बात नहीं है?